1 “स्वर्ग का राज्य एक ज़मींदार के समान है जो सुबह सवेरे अपने अंगूर के बगीचों के लिये मज़दूर लाने को निकला।
2 उसने चाँदी के एक रुपया पर मज़दूर रख कर उन्हें अपने अंगूर के बगीचे में काम करने भेज दिया।
3 “नौ बजे के आसपास ज़मींदार फिर घर से निकला और उसने देखा कि कुछ लोग बाजार में इधर उधर यूँ ही बेकार खड़े हैं।
4 तब उसने उनसे कहा, ‘तुम भी मेरे अंगूर के बगीचे में जाओ, मैं तुम्हें जो कुछ उचित होगा, दूँगा।’
5 सो वे भी बगीचे में काम करने चले गये। “फिर कोई बारह बजे और दुबारा तीन बजे के आसपास, उसने वैसा ही किया।
6 कोई पाँच बजे वह फिर अपने घर से गया और कुछ लोगों को बाज़ार में इधर उधर खड़े देखा। उसने उनसे पूछा, ‘तुम यहाँ दिन भर बेकार ही क्यों खड़े रहते हो?’
7 “उन्होंने उससे कहा, ‘क्योंकि हमें किसी ने मज़दूरी पर नहीं रखा।’ “उसने उनसे कहा, ‘तुम भी मेरे अंगूर के बगीचे में चले जाओ।’
8 “जब साँझ हूई तो अंगूर के बगीचे के मालिक ने अपने प्रधान कर्मचारी को कहा, ‘मज़दूरों को बुलाकर अंतिम मज़दूर से शुरू करके जो पहले लगाये गये थे उन तक सब की मज़दूरी चुका दो।’
9 “सो वे मज़दूर जो पाँच बजे लगाये थे, आये और उनमें से हर किसी को चाँदी का एक रुपया मिला।
10 फिर जो पहले लगाये गये थे, वे आये। उन्होंने सोचा उन्हें कुछ अधिक मिलेगा पर उनमें से भी हर एक को एक ही चाँदी का रुपया मिला।
11 रुपया तो उन्होंने ले लिया पर ज़मींदार से शिकायत करते हुए
12 उन्होंने कहा, ‘जो बाद में लगे थे, उन्होंने बस एक घंटा काम किया और तूने हमें भी उतना ही दिया जितना उन्हें। जबकि हमने सारे दिन चमचमाती धूप में मेहनत की।’
13 “उत्तर में उनमें से किसी एक से जमींदार ने कहा, ‘दोस्त, मैंने तेरे साथ कोई अन्याय नहीं किया है। क्या हमने तय नहीं किया था कि मैं तुम्हें चाँदी का एक रुपया दूँगा?
14 जो तेरा बनता है, ले और चला जा। मैं सबसे बाद में रखे गये इस को भी उतनी ही मज़दूरी देना चाहता हूँ जितनी तुझे दे रहा हूँ।
15 क्या मैं अपने धन का जो चाहूँ वह करने का अधिकार नहीं रखता? मैं अच्छा हूँ क्या तू इससे जलता है?’
16 “इस प्रकार अंतिम पहले हो जायेंगे और पहले अंतिम हो जायेंगे।”
17 (मरकुस 10:32-34; लूका 18:31-34) जब यीशु अपने बारह शिष्यों के साथ यरूशलेम जा रहा था तो वह उन्हें एक तरफ़ ले गया और चलते चलते उनसे बोला,
18 “सुनो, हम यरूशलेम पहुँचने को हैं। मनुष्य का पुत्र वहाँ प्रमुख याजकों और यहूदी धर्म शास्त्रियों के हाथों सौंप दिया जायेगा। वे उसे मृत्यु दण्ड के योग्य ठहरायेंगे।
19 फिर उसका उपहास करवाने और कोड़े लगवाने को उसे गै़र यहूदियों को सौंप देंगे। फिर उसे क्रूस पर चढ़ा दिया जायेगा किन्तु तीसरे दिन वह फिर जी उठेगा।”
20 फिर जब्दी के बेटों की माँ अपने बेटों समेत यीशु के पास पहुँची और उसने झुक कर प्रार्थना करते हुए उससे कुछ माँगा।
21 यीशु ने उससे पूछा, “तू क्या चाहती है?” वह बोली, “मुझे वचन दे कि मेरे ये दोनों बेटे तेरे राज्य में एक तेरे दाहिनी ओर और दूसरा तेरे बाई ओर बैठे।”
22 यीशु ने उत्तर दिया, “तुम नहीं जानते कि तुम क्या माँग रहे हो। क्या तुम यातनाओं का वह प्याला पी सकते हो, जिसे मैं पीने वाला हूँ?” उन्होंने उससे कहा, “हाँ, हम पी सकते हैं!”
23 यीशु उनसे बोला, “निश्चय ही तुम वह प्याला पीयोगे। किन्तु मेरे दाएँ और बायें बैठने का अधिकार देने वाला मैं नहीं हूँ। यहाँ बैठने का अधिकार तो उनका है, जिनके लिए यह मेरे पिता द्वारा सुरक्षित किया जा चुका है।”
24 जब बाकी दस शिष्यों ने यह सुना तो वे उन दोनों भाईयों पर बहुत बिगड़े।
25 तब यीशु ने उन्हें अपने पास बुलाकर कहा, “तुम जानते हो कि गैर यहूदी राजा, लोगों पर अपनी शक्ति दिखाना चाहते हैं और उनके महत्वपूर्ण नेता, लोगों पर अपना अधिकार जताना चाहते हैं।
26 किन्तु तुम्हारे बीच ऐसा नहीं होना चाहिये। बल्कि तुम में जो बड़ा बनना चाहे, तुम्हारा सेवक बने।
27 और तुम में से जो कोई पहला बनना चाहे, उसे तुम्हारा दास बनना होगा।
28 तुम्हें मनुष्य के पुत्र जैसा ही होना चाहिये जो सेवा कराने नहीं, बल्कि सेवा करने और बहुतों के छुटकारे के लिये अपने प्राणों की फिरौती देने आया है।”
29 (मरकुस 10:46-52; लूका 18:35-43) जब वे यरीहो नगर से जा रहे थे एक बड़ी भीड़ यीशु को पीछे हो ली।
30 वहाँ सड़क किनारे दो अंधे बैठे थे। जब उन्होंने सुना कि यीशु वहाँ से जा रहा है, वे चिल्लाये, “प्रभु, दाऊद के पुत्र, हम पर दया कर!”
31 इस पर भीड़ ने उन्हें धमकाते हुए चुप रहने को कहा पर वे और अधिक चिल्लाये, “प्रभु! दाऊद के पुत्र हम पर दया कर!”
32 फिर यीशु रुका और उनसे बोला, “तुम क्या चाहते हो, मैं तुम्हारे लिए क्या करूँ?”
33 उन्होंने उससे कहा, “प्रभु, हम चाहते हैं कि हम देख सकें।”
34 यीशु को उन पर दया आयी। उसने उनकी आँखों को छुआ, और तुरंत ही वे फिर देखने लगे। वे उसके पीछे हो लिए।