1 हे परमेश्वर, तूने हमको बिसरा दिया। तूने हमको विनष्ट कर दिया। तू हम पर कुपित हुआ। तू कृपा करके वापस आ।
2 तूने धरती कँपाई और उसे फाड़ दिया। हमारा जगत बिखर रहा, कृपया तू इसे जोड़।
3 तूने अपने लोगों को बहुत यातनाएँ दी है। हमदाखमधु पिये जन जैसे लड़खड़ा रहे और गिर रहे हैं।
4 तूने उन लोगों को ऐसे चिताया, जो तुझको पूजते हैं। वे अब अपने शत्रु से बच निकल सकते हैं।
5 तू अपने महाशक्ति का प्रयोग करके हमको बचा ले! मेरी प्रार्थना का उतर दे और उस जन को बचा जो तुझको प्यारा है!
6 परमेश्वर ने अपने मन्दिर में कहा: “मेरी विजय होगी और मैं विजय पर हर्षित होऊँगा। मैं इस धरती को अपने लोगों के बीच बाँटूंगा। मैं शकेम और सुक्कोत घाटी का बँटवारा करूँगा।
7 गिलाद और मनश्शे मेरे बनेंगे। एप्रेम मेरे सिर का कवच बनेगा। यहूदा मेरा राजदण्ड बनेगा।
8 मैं मोआब को ऐसा बनाऊँगा, जैसा कोई मेरे चरण धोने का पात्र। एदोम एक दास सा जो मेरी जूतियाँ उठता है। मैं पलिश्ती लोगों को पराजित करूँगा और विजय का उद्धोष करूँगा।”
9 (9-10) कौन मुझे उसके विरूद्ध युद्ध करने को सुरक्षित दृढ़ नगर में ले जायेगा मुझे कौन एदोम तक ले जायेगा हे परमेश्वर, बस तू ही यह करने में मेरी सहायता कर सकता है। किन्तु तूने तो हमको बिसरा दिया! परमेश्वर हमारे साथ में नहीं जायेगा! और वह हमारी सेना के साथ नहीं जायेगा।
10 हे परमेश्वर, तू ही हमको इस संकट की भूमि से उबार सकता है! मनुष्य हमारी रक्षा नहीं कर सकते!
11 किन्तु हमें परमेश्वर ही मजबूत बना सकता है। परमेश्वर हमारे शत्रुओं को परजित कर सकता है!